कुछ आरजू नहीं है,है आरजू तो यह
रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफ़न में.
(अशफाक उल्ला खां)
आजादी के लिए हँसते हँसते अपने प्राणो की आहुति देने वाले अमर शहीद अशफ़ाक़ुल्ला ख़ान जी की आज जयंती है इस अवसर मां वाराही न्यूज चैनल सभी देशवासियो की तरफ से नमन करता हैं। वह हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सह- संस्थापक थे यह संस्था उस समय आजादी के लिए संघर्ष कर रहे युवाओं को एकजुट करने के लिए प्रमुखता से कार्य कर रही थी
उनका जन्म 22 अक्टूबर, 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर ज़िले के शहीदगढ़ में हुआ था.एक संभ्रांत मुस्लिम पठान परिवार से थे और छह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे.उनके पिता का नाम शफ़ीकुल्लाह ख़ान और मां का नाम मज़रुनिस्सा था. उनके पिता उस समय जिले के बड़े काश्तकारों में गिने जाते थे ।बताते हैं कि अशफाक को बचपन से ही शायरी का शौक था. चूंकि अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे तो उस समय घर पर घोड़े और बंदूकें मौजूद होती थी लिहाजा वे घुड़सवारी, निशानेबाज़ी, और तैराकी में काफी निपुण थे.वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे. वे 9 अगस्त 1925 में काकोरी एक्शन में शामिल थे और इस मामले में उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा सजा -ए-मौत मिली थी. बताया जाता है कि जब जेलर ने उनसे अतिंम इच्छा पूछी तो उन्होंने शुरूआत में लिखी शायरी के बदौलत अपनी भावना प्रकट की थी । महज 27 वर्ष की अल्पायु में देश के अमर सपूत को 19 दिसंबर, 1927 को फैज़ाबाद जेल में फांसी की सजा दे दी गयी थी।
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