यहां की अदालत में भूत प्रेतो की लगती है पेशी
यहाँ मुख्य रूप से तीन देवों की प्रधानता है, ऐसी मान्यता है कि ये बालाजी सरकार यहां स्वयंभू रूप में विराजमान हैं।
श्री बालाजी महाराज, श्री प्रेतराज सरकार और श्री भैरव कोतवाल। यह तीन देव यहाँ आज से कई वर्ष पहले यहां प्रकट हुए। किदवंतियों के अनुसार सबसे पहले गणेशपुरी जी महाराज को स्वप्न हुआ कि यहां देव शक्ति के रूप में बालाजी सरकार विद्यमान हैं। तभी से गणेश पूरी द्वारा इस स्थान की पूजा अर्चना शुरू की गई। आपको बता दें कि गणेशपुरी का गांव उदयपुरा यहां से करीब तीन किमी दूरी पर स्थित है और आज भी उन्न्ही के वंशज इस मंदिर की पूजा अर्चना की जिम्मेदारी संभालते हैं। गणेशजी के बाद किशोरपुरी जी महाराज और वर्तमान में श्री नरेशपुरी जी महाराज इस मंदिर के महंत हैं।
बताया जा रहा है कि इस मूर्त्ति को अलग से किसी कलाकार ने नहीं बनाया है, बल्कि यह तो पर्वत का ही अंग है और यह समूचा पर्वत ही मानों उसका 'कनक भूधराकार' शरीर है। इसी मूर्त्ति के चरणों में एक छोटी-सी कुण्डी थी, जिसका जल कभी बीतता ही नहीं था। रहस्य यह है कि महाराज की बायीं ओर छाती के नीचे से एक बारीक जलधारा निरन्तर बहती रहती है जो पर्याप्त चोला चढ़ जाने पर भी बंद नहीं होती।
इस प्रकार तीनों देवों की स्थापना हुई। विक्रमी-सम्वत् १९७९ में श्री महाराज ने अपना चोला बदला। उतारे हुए चोले को गाड़ियों में भरकर श्री गंगा में प्रवाहित करने हेतु बहुत से श्रद्धालु चल दिये। चोले को लेकर जब मंडावर रेलवे स्टेशन पर पहुँचे तो रेलवे अधिकारियों ने चोले को सामान समझकर सामान-शुल्क लेने के लिए उस चोले को तौलना चाहा, किन्तु वे तौलने में असमर्थ रहे। चोला तौलने के क्रम में वजन कभी एक मन बढ़ जाता तो कभी एक मन घट जाता; अन्तत: रेलवे अधिकारी ने हार मान लिया और चोले को सम्मान सहित गंगा जी को समर्पित कर दिया गया। उस समय हवन, ब्राह्मण भोजन एवं धर्म ग्रन्थों का पारायण हुआ और नये चोले में एक नयी ज्योति उत्पन्न हुई, जिसने भारत के कोने-कोने में अपना दिव्य प्रकाश फैला दिया।
यहां की ऐसी मान्यता है कि बालाजी महाराज के दर्शन के लिए मेंहदीपुर जाने से कम से कम एक सप्ताह पहले आपको मांस , अण्डा , शराब आदि तामसिक चीजों का त्याग करना चाहिए और सर्वप्रथम बालाजी महाराज के दर्शन से पूर्व प्रेतराज सरकार के दर्शन और प्रेतराज चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसके बाद बालाजी महाराज के दर्शन और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए और सबसे अन्त में कोतवाल भैरवनाथ के दर्शन करने के बाद भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। मंदिर में किसी से कोई भी चीज़ यहां तक कि प्रसाद भी न लें और न ही किसी को कोई भी चीज़ जैसे प्रसाद न दें। आते तथा जाते समय भूल से भी पीछे मुड़कर न देखें। आने और जाने की दरखास्त लगाकर जाएं क्योंकि बाबा की आज्ञा से ही कोई मेंहदीपुर में आ तथा जा सकता है।
देवताओं के पद तथा उनका भोग
बालाजी महाराज - बालाजी महाराज मेंहदीपुर के राजा और भगवान शिव के अवतार हैं। इनके समक्ष ही बुरी आत्माओं की पेशी लगती है। बालाजी महाराज को लड्डूओं का भोग लगाया जाता है।
भैरव कोतवाल - भैरव बाबा बालाजी महाराज की सेना के सेनापति और भगवान शिव के ही अवतार हैं। इसी कारण इन्हें कोतवाल कप्तान भी कहा जाता है। इन्हें उड़द की दाल से बनी चीजों का भोग प्रिय है। खास कर उड़द की दाल से बने दही भल्ले और मिठाइयों में इन्हें जलेबी और गुलगुले का भोग विशेष प्रिय है।
प्रेतराज सरकार - प्रेतराज सरकार बालाजी महाराज के दरबार के दण्डनायक हैं। ये ही बुरी आत्माओं को दण्ड देने का अधिकार रखते हैं। इन्हें पके हुए चावलों और खीर का भोग लगता है।
यहां गर्मियों में सांय 6.45 बजे और सर्दियों में सांय 6 बजे आरती होती है लेकिन सुबह की आरती का समय प्रत्येक मौसम में 6 बजे निर्धारित है।
मनोकामना पूर्ति हेतु यहां लगती है अर्जी
ऐसी मान्यता है बालाजी सरकार के दरबार में सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु भक्त गण सवामनी लड्डू पूड़ी,हलवा पूड़ी आदि सामग्री की अर्जी लगाते हैं।
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