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Oct 10, 2024

यहाँ पर प्रतीकात्मक नेत्र चढाने से आँखों से सम्बंधित सभी तरह की बीमारियाँ दूर हो जाती है.

गोंडा- जनपद मुख्यालय से दक्षिण-पश्चिम कोने पर सरयू एवं घाघरा संगम के पास मुकुंदपुर गाँव में उत्तरी भवानी मंदिर में प्रतिवर्ष नवरात्री पर विशाल मेला लगता है. जिसमे देश व प्रदेश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते है। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यताएं हैं कि यहाँ पर प्रतीकात्मक नेत्र चढाने से आँखों से सम्बंधित सभी तरह की बीमारियाँ दूर हो जाती है। माँ की इस महिमा के चलते यहाँ भारी संख्या में दूर-दूर से भक्तगण पूजा अर्चना के लिए आते हैं। सोमवार व शुक्रवार को दूरदराज के जिलों से यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है। यहाँ पर प्रतीकात्मक नेत्र चढाने से आँखों से सम्बंधित सभी तरह की बीमारियाँ दूर हो जाती हैं। देवी पीठ की कथा के अनुसार सरयू घाघरा के पवित्र पावन संगम पर पसका गाँव में भगवान बाराह का विशाल मंदिर है। जहाँ पर प्रतिवर्ष पौष मास में महीनो तक संगम मेला चलता है। इस संगम मेले को लघु प्रयाग की संज्ञा दी गयी है। ऐसी मान्यता है कि जो महाकुम्भ तीर्थराज प्रयाग में स्नान हेतु नहीं पहुँच पाते हैं, वे यहीं एक माह तक रहकर नदी के तट पर कल्पवास करते हैं। उत्तरी भवानी मंदिर जाने वाले श्रद्धालु भगवान वाराह और देवी वाराही (उत्तरी भवानी ) के दर्शन करके धन्य हो जातें हैं। बताया जाता है कि भगवान वाराह ने शूकर के रूप में जितने भू-भाग पर लीलाएं की वो धाम वाराह अर्थात सूकर क्षेत्र के नाम से प्रसिद्द हुआ। ऐसी मान्यता है की एक बार हिरण्याक्ष्य नामक दैत्य द्वारा पृथ्वी को समुद्र में डुबो दिए जाने पर ब्रह्मा जी के नाक से अंगूठे के बराबर एक सूकर प्रकट हुआ और देखते ही देखते उसने विशाल रूप धारण कर लिया। समुद्र से बाहर निकलते समय वह पृथ्वी के जिस भू-भाग पर सबसे पहले ऊपर आया वो भाग अवध के नाम से विख्यात है। उसके बाद उसने घुरघुराते हुए जितने भू-भाग को खोदा वो भाग घाघरा नदी कहलाई। और इसी घुर घुराहट के कारण ही इस नदी का नाम घाघरा पड़ा। शूकर की घुर घुराहट से मृत्यु लोक, तपलोक और सत्यलोक के ऋषि मुनि व देवता गण अचम्भित होकर बोल पड़े पसुकां पसुकां.अर्थात यह कैसा पशु है, उस पशु के नाम से ही वह स्थान व गाँव पसका के नाम से जाना जाने लगा। वहां भगवान बाराह का विशाल प्राचीन मंदिर आज भी विद्यमान है। ऐसा माना जाता है कि वाराह भगवान की स्तुति के दौरान पसका से कुछ ही दूरी पर स्थित मुकुंदपुर गाँव में धरती से देवी वाराही (उत्तरी भवानी ) प्रकट हुई, तब विष्णु जी के नाभि कमल पर विराजमान ब्रह्मा और मनुसतरूपा सर्वप्रथम बार देखने के बाद जोर-जोर से बोल उठे अवतरी भवानी- अवतरी भवानी अर्थात भवानी जगदम्बा का अवतार हुआ है। इसी के बाद इस स्थान को उत्तरी भवानी के नाम से जाना जाने लगा। श्रीमदभगवत गीता के तृतीय खंड में भगवान वाराह की कथा और दुर्गा स्तुति में वाराही देवी का उल्लेख मिलता है, जो इस स्थान की महत्ता की पुष्टि करता है. माँ देवी उत्तरी भवानी धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष आदि सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. दुर्गा स्तुति के बारहवे श्लोक में भवानी स्वयं कहती है कि मै सभी बाधाओं से मुक्त करके भक्तो की धन पुत्र ऐश्वर्य प्रदान करती हूँ। वाराही देवी जगदम्बा ने महिसासुर बध के दौरान कहा था कि मनुष्य जिन मनोकामनाओं के लिए मेरी स्तुति करेगा वो निश्चित पूर्ण होंगी। ऐसी मान्यता है की मंदिर के गर्भ गृह के नीचे एक सुरंग है जिससे होकर वाराह भगवान ने पाताल जाकर हिरण्याक्ष्य नामक राक्षस का बध किया था. मंदिर पर लगा प्राचीन व विशाल वट वृक्ष उस स्थान की महत्वा और पौराणिकता व प्राचीनता का प्रत्यक्ष साक्षी है।

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