Sep 13, 2024

साहित्यिक संस्था बज्मे गजल का मनकबती मुशायरा आयोजित

 


करनैलगंज /गोण्डा - साहित्यिक संस्था 'बज़्मे शामे ग़ज़ल' का सालाना तरही मुसालमा (मनक़बती मुशायरा) एम. ए.मेमोरियल स्कूल में आयोजित हुआ।बाराबंकी से पधारे एस एम हैदर की अध्यक्षता में संचालन याकूब सिद्दीक़ी 'अज्म' ने किया।महामंत्री मुजीब सिद्दीक़ी ने स्वागत वक्तव्य दिया।संरक्षक गणेश तिवारी 'नेश' ने बतलाया कि करबला में बड़ों से पहले बच्चों की शहादत क्यों हुई।संरक्षक अब्दुल गफ्फार ठेकेदार ने शाएरों को मुबारकबाद देते हुए नए शाएरों की हौसला अफजाई की। सगीर आबिद रिज़वी एडवोकेट (बहराइच) ने तकरीर में इमाम हुसैन व उनके साथियों से प्रेरणा लेते हुए अपने किरदार में बदलाव लाने पर ज़ोर दिया।अध्यक्षीय संबोधन में एस एम हैदर ने ऐसे आयोजनों के लिए संस्था की सराहना की।

 शाएरों ने मिसरा तरह "हम गुनहगारों को शाहे दीं की निस्बत मिल गई" पर कलाम पेश किये।

नसीर अंसारी बाराबंकवी ने कहा-

अहले बैते पाक की जिसको मोहब्बत मिल गई-यूं समझ लो उसको दुनिया ही में जन्नत मिल गई।

अंजुम ज़ैदी बहराइची ने पढ़ा-

बिस्तरे अहमद पे शब भर चैन से सोए अली-खाक में चालीस तलवारों की हसरत मिल गई।

सगीर नूरी बाराबंकवी ने वफा की परिभाषा बताई-

आज भी मोहताज है लफ्ज़े वफा अब्बास का-हज़रते अब्बास से ऐसी फज़ीलत मिल गई।

आदर्श बाराबंकवी ने कहा-

जब शरण उनको मिली कुरआन की दुनिया में तब-राह से भटके हुए लोगों को इज़्ज़त मिल गई।

मौलाना उवैसुल क़ादरी ने कहा-

छोड़ कर बातिल का दामां हक की जानिब आ गए-देखते ही देखते हुर को भी जन्नत मिल गई।

फौक़ बहराईची का यह शेर सराहा गया-

देखिए फरज़ंदे ज़हरा की बुलंदी देखिए-दोशे पैगंबर मिला ज़ुल्फे रिसालत मिल गई।

हैदर गोंडवी ने कहा-

चेहरये अकबर में यूं उभरे मुहम्मद मुस्तफा-आईने को आईने जैसी ही सूरत मिल गई।

अजय श्रीवास्तव ने यूं श्रद्धासुमन अर्पित किया-

होते भारत में तो हम हिंदू मदद करते ज़रूर - खुद मुसलमानों से जब शह को मुसीबत मिल गई। अवध राज वर्मा ‘करुण’ ने लानत भेजी— 

तुम से दुनिया पूछती है कर्बला के जालिमों— नीच तुम कितने हो, तुम को किस की संगत मिल गई? 

एम.मुबीन मंसूरी ने हजरत अब्बास पर कहा— 

कह रही थीं नहर से भागी हुई फौजैं यही— सनीये हैदर को हैदर की विरासत मिल गई। 

हस्सान जलालपुरी ने अली असगर के हवाले से कहा—

कर्बला की जंग आसानी से जीती जाये गी—

एक नन्हीं सी हंसी की थी ज़रूरत मिल गई।

युवा शाए़र शरफ उतरौलवी ने कहा— 

ऐ हबीब इब्ने मज़ाहिर लो जवानों का सलाम— 

दोस्ती के शहर की तुम को इमामत मिल गई।

साथ ही आबिद बहराइची,हाजी शमीम अख्तर,मुजीब सिद्दीक़ी,अनीस आरिफी, नियाज़ क़मर,कौसर सलमानी,असलम वारसी बकाई,साबिर गुड्डू,सगीर सिद्दीक़ी,शकील अशरफी,अख्तर गोंडवी, सहर रियाज़ वारसी,रोहित सोनी 'ताबिश',सलीम बेदिल,यासीन राजू, निज़ामुद्दीन शम्स व इमरान मसऊदी ने कलाम पेश किए।इस अवसर पर हाजी ज़हीर वारसी,हाजी रमज़ान राईनी,अब्दुल कय्यूम सिद्दीकी,हरीश शुक्ला, गुलज़ार मक्खन बकाई,अब्दुल खालिक अंसारी,अहमद कलीम वारसी, डॉo हबीबुल्लाह,आफाक सिद्दीकी,शाहिद रज़ा एडवोकेट,यावर हुसैन मुन्ना,मास्टर रज़ा, आज़म खां,अतीक कुरैशी,तौकीर राजू,खुर्शीद आलम,तालिब अंसारी, आज़म खां,वकील अहमद, सलामत अली, वसीम राईनी, मु० अहमद, अनीस कुरैशी, मुईनुद्दीन , हारून सलमानी, शानू बाबा , पीर मोहम्मद , रिजवान,सईद अंसारी,आदिल असलम, बब्लू सलमानी,नसीम रौशन,वसीम खां,सोनू श्रीवास्तव,मेराजुद्दीन,यूसुफ हुसैन,ज़हीर अंसारी,वसीम,इमरान,अशरफ सिद्दीक़ी, शारिक,अमान, अरसलान सहित अन्य उपस्थित रहे।

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