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Aug 14, 2024

देश की आजादी में महाराजा देवीबख्श सिंह का योगदान

 


गोण्डा - हम देश के स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 2024 के पावन पर्व पर गोण्डा नरेश देबी बख्श सिंह साहित्य व संस्कृति जागरण समिति की ओर से आप सभी के सुखमय भविष्य की शुभकामना करते है। आज का दिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पुरखों के अतुलित साहस, त्याग, बलिदान से मिली स्वतंत्रता की थाती को अक्षुण रखने, उनके सपनों को समीक्षा सहित पूरा करने हेतु तत्तपर रहने का संकल्प लेने का भी दिन है। आज स्वतंत्रता को अक्षुण रखने हेतु देश वासियों के समक्ष सच्ची व सम्पूर्ण 57वीं संग्राम गाथा लाया जाना युगधर्म है। विदित है कि मा० योगी जी के नेतृत्व वाली उ०प्र० सरकार ने गुमनामी के अंधकार में पड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गौरव गाथा, सेनानी परिजनों को चिहिन्त कर प्रकाश में लाने को प्रतिबद्ध है। ऐसे में सगर्व सच्चाई प्रकाश में लाते हुए हर्ष हो रहा है कि देश की 57वीं संग्राम गोण्डा नरेश देबी बख्श सिंह ने ही तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर व हनुमानगढ़ी अयोध्या के बाबा राम चरण दास की धर्माज्ञा, प्रेरणा व सहयोग पाकर मई 1857 से प्रारम्भ कर अंग्रेजों के अजेय होने की छवि को मई 1860 में ध्वस्त होने तक लड़ा। संसार ने देखा कि अंग्रेज अजेय नहीं है। उन्हें हराया जा सकता है। भारत में अंग्रेजों द्वारा इस गौरव गाथा के लेखन व प्रचार-प्रसार को राजद्रोह का अपराध घोषित होने के बावजूद महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर विनायक दमोदर सावरकर जी ने 1907 में 1857 सम्बंधी ब्रिटिश साहित्य का अध्ययन, समीक्षा कर लिखा "आपने अपने सीमित साधनों के बल पर न केवल निरंकुश शासन के बल्कि निरकुंश शासन और विश्वासघात दोनों के विरूद्ध लम्बा युद्ध लड़ा। दोआब और अयोध्या ने संगठित होकर न केवल ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध संग्राम छेड़ा, बल्कि शेष भारत के विरूद्ध भी संग्राग छेड़ा। आपने तीन वर्षों तक युद्ध लड़ा और हिन्दुस्थान का ताज फिरंगिया से लगभग छीन लिया था। तथा विदेशी शासन के खोखले अस्तित्व को चकनाचूर कर दिया था। कितना बड़ा पराक्रम है यह! दोआब और अयोध्या जो काम एक गाह में कर सकते थे वहीं कार्य समूचे हिन्दुस्तान का एक संगठित आकस्मिक संकल्पित जागरण एक ही दिन में कर सकता है। यही प्रत्याशा हमारे अंतर को प्रकाशित करती है। और हमें सफलता का आश्वासन दती है तथा इसीलिए हम सशपथ यह घोषणा करते है कि तुम्हारा हीरक जयंती वर्ष पुर्नरोदयी भारत को विजयी भाव के साथ विश्वं में पैर्दापण करते हुए देखे बिना व्यतीत नहीं होगा।


सावरक कृति 1867 पेज नं० 26


इस पुस्तक का लेखन कर राजद्रोह फैलाने के अपराध में अंग्रेजों ने सावरकर जी को आजीवन कारावास की सजा दे जेल में डाल दिया। तथापि इस पुस्तक के गुप्त प्रकाशित संस्करण देश के क्रान्तिकारी व अहिंसक आन्दोलनों को प्रेरित करते रहे। इस प्रकार हम देखते है कि देश के स्वतंत्रता का श्रेय के पात्र 57वीं संग्राम के चरित्र नायक गोण्डा नरेश देबी बख्श सिंह और उनके कीर्ति गायन के सहारे द्वितीय स्वतंत्रता आन्दोलनों के प्रेरक सावरकर जी है। इसी गौरव गाथा से प्रेरित गांधी जी व उनके अनुयायी सरदार भगत सिंह, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि देशवासियों ने देशभक्ति का जोश भरते रहे। अंग्रेज एक दिन भी चैन से शासन नहीं कर सके। फलस्वरूप 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिल गयी।

माधराज सिंह की कलम से

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