श्रीमद्भागवत कथा से मन व आत्मा पवित्र होती हैः आचार्य रमेश
श्रीमद् भागवत के द्वितीय दिवस परीक्षित जन्म की कथा सुनाई
फखरपुर, बहराइच। श्रीमद् भागवत कथा सुनने से जहां आत्मा शुद्ध होती है वही मन भी पवित्र होता है। संसार में धन का होना जरूरी नहीं है धन तो दुर्योधन के पास भी था परंतु उसने धन को लाक्षागृह में लगाया। पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण की सेवा कर अपने जीवन को कृतार्थ बनाया। उक्त कथा को कथा व्यास आचार्य रमेश चंद्र शास्त्री ने विकास खंड अंतर्गत बभनौटी शंकरपुर के मजरा फुलवरिया में चल रही संगीत मय श्रीमद् भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के द्वितीय दिन परीक्षित जन्म के दौरान कही। आचार्य जी ने कहा कहा कि द्रोणी के द्वारा छोड़ गया ब्रह्मबाण उत्तरा देवी की गर्भ को जलने लगा उत्तरा देवी रोती हुई भगवान श्री कृष्ण की शरण में गई। श्री कृष्ण ने उसकी रक्षा की। इस प्रकार परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित कुछ बड़े हुए तब पांडवों ने हस्तिनापुर के सिंहासन पर उनका राज्याभिषेक किया। परीक्षित अपने प्रजा का लालन पालन करने लगे। एक दिन परीक्षित वन में बिहार करने गए थे वहां पर कौतूहल बस मृतक सर्प को समीक ऋषि के कंठ में डाल दिया। तब क्रोधित होकर ऋषि पुत्र ने नृप परीक्षित को तक्षक द्वारा काटने से मृत्यु का श्राप दे दिया। जिससे नृप परीक्षित सुकताल नामक स्थान पर पावन गंगा के उत्तर तट पर श्री सुखदेव बाबा से श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा को श्रवण किया। भजन गायक महेश शुक्ला एवं नाल वादक राधेश्याम ने सुंदर-सुंदर भजन सुना कर लोगों को मंत्र मुक्त कर दिया। यजमान की भूमिका निभा रहे ब्राह्मण कुलभूषण, ननकाऊ मिश्र ने पूजा आरती के पश्चात कथा श्रवण किया। इस अवसर पर मेवालाल, सांवली प्रसाद, रामसागर, राजित राम, लक्ष्मीकांत, सुभाष, अश्विनी, सुशील, श्याम मनोहर, विपिन आदि लोग उपस्थित रहे।
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