करनैलगंज/ गोण्डा - नारायणपुर साल में डा. हनुमान प्रसाद दुबे एवं श्रीमती योगमाया द्वारा आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा में आचार्य पं. बैद्यनाथ त्रिपाठी ने द्वितीय दिवस में भक्त द्वारा श्रवण ध्यान पर प्रकाश डाला । आचार्य जी ने बताया कि गोकर्ण महराज ने धुंधकारी को प्रेतयोनि से मुक्ति हेतु श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया तथा धुंधकारी ने बड़े ही मनोयोग से कथा का श्रवण किया फलस्वरूप भगवान के दूत धुंधकारी को लेने विमान से आये,तब आश्चर्य से गोकर्ण महराज ने ओर सभी श्रोतागणों की मुक्ति के लिए विमान न लाने का कारण पूंछा तो नारायण के दूतों ने बताया कि जो श्रीमद्भागवत महापुराण कथा मनोयोग से श्रवण करता है उसे ही नारायण का सायुज्य प्राप्त होता है।य। सुनकर गोकर्ण महराज ने सबके मुक्ति कामना के लिए नारायण से कातर होकर प्रार्थना की ,नारायण ने प्रसन्न होकर सबको अपना लोक प्रदान किया। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि -
"नाहं वसामि वैकुण्ठे, योगिनां हृदये न च।
मद् भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठन्ति नारद:। ।" अर्थात हे नारद न तो वैकुण्ठ में निवास करता हूँ न हि योगियों के हृदय में निवास करता हूँ,मै तो वहाँ निवास करता हूँ जहाँ भक्त मेरा गुणानुवाद करते हैं ।इस प्रकार भक्त जहां भी श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण और कीर्तन करते है,वहीं वैकुण्ठ है। कथा श्रवण में पूर्व प्रधान राधेश्वर तिवारी , जंगबहादुर सिंह,सुनील कोटेदार,जिलेदार सिंह आदि उपस्थित रहै।
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